Zomato बनाएगा अब प्लेन एयरोस्पेस: Preparations to transform India’s regional air connectivity
Zomato बनाएगा अब प्लेन ::::::::::::::::::भारत में इनोवेशन और प्राइवेट इन्वेस्टमेंट की दुनिया में एक नया नाम तेजी से उभर कर सामने आ रहा है –
लैट एयरोस्पेस (LAT Aerospace)। इस स्टार्टअप की शुरुआत ज़ोमैटो के संस्थापक दीपेन्द्र गोयल द्वारा की गई है।
जहां वह पहले फूड डिलीवरी, क्लाउड किचन, और टिकट बुकिंग जैसे सेगमेंट में निवेश कर चुके हैं,
वहीं अब उन्होंने एक बिल्कुल नए क्षेत्र – एयरोस्पेस मैन्युफैक्चरिंग – में क़दम रखा है।
यह इन्वेस्टमेंट सिर्फ एक फाइनेंशियल मूव नहीं, बल्कि भारत की रीजनल एयर कनेक्टिविटी को रिवॉल्यूशनाइज़ करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
Zomato क्यों कर रहा एयरोस्पेस में निवेश ?
भारत का एवीएशन सेक्टर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा क्षेत्र बन चुका है। लेकिन इसके बावजूद देश की एक बड़ी जनसंख्या एयर ट्रैवल से वंचित है।
अफॉर्डेबिलिटी, इन्फ्रास्ट्रक्चर और सीमित एयर स्ट्रिप्स जैसी बाधाएं आज भी इस सेक्टर की प्रगति में रुकावट बनी हुई हैं।
ऐसे में कम लागत में चलने वाले, छोटे रनवे पर टेक ऑफ और लैंड कर सकने वाले एयरक्राफ्ट्स की जरूरत स्पष्ट रूप से सामने आती है।
यही जरूरत लैट एयरोस्पेस पूरा करना चाहती है।
LAT Aerospace क्या कर रही है?
लैट एयरोस्पेस का मुख्य उद्देश्य है: Short Take-Off and Landing (STOL) एयरक्राफ्ट्स बनाना।
ये एयरक्राफ्ट्स 12-24 सीटों की क्षमता वाले होंगे और 1500 किमी तक की रेंज को कवर कर सकेंगे।
इनकी खासियत यह होगी कि इन्हें भारी-भरकम रनवे या एयरपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता नहीं होगी।
यह छोटे शहरों, टियर 2 और टियर 3 क्षेत्रों को जोड़ने के लिए आदर्श साबित होंगे।
रीजनल कनेक्टिविटी का महत्व
भारत में लगभग 450 एयर स्ट्रिप्स हैं, जिनमें से केवल 150 ही ऑपरेशनल हैं। इसका मतलब है कि 2/3 पोटेंशियल पूरी तरह से अनटैप्ड है।
LAT Aerospace इन स्ट्रिप्स को फिर से एक्टिव बनाकर और न्यूनतम इन्फ्रास्ट्रक्चर के साथ एयर कनेक्टिविटी प्रदान कर सकती है।
वॉक-इन एंड फ्लाई अनुभव
LAT Aerospace का उद्देश्य सिर्फ यात्रा को सस्ता बनाना नहीं, बल्कि उसे आसान बनाना भी है।
यात्री बिना अधिक जटिलताओं के—सिर्फ टिकट और सिक्योरिटी चेक के बाद—सीधे फ्लाइट में बैठ सकें, यही ‘वॉक-इन एंड फ्लाई’ अवधारणा है।
LAT Aerospace बनाम Air Taxi मॉडल
हालांकि एयर टैक्सी मॉडल पहले से मौजूद है, लेकिन उसमें सीटिंग कैपेसिटी बहुत कम होती है (5-6 सीटें)।
LAT Aerospace इसे अगले स्तर पर ले जाती है—20-24 सीटों की ‘एयर बस’ जैसी सर्विस, जो न केवल शहरों में बल्कि ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में भी यात्रियों को कनेक्ट करेगी।
सरकारी योजनाओं से तालमेल
भारत सरकार की उड़ान स्कीम (UDAN – Ude Desh ka Aam Nagrik) का उद्देश्य भी यही है: आम नागरिक को एयर ट्रैवल उपलब्ध कराना। लेकिन अब तक इसे वह सफलता नहीं मिल पाई है जिसकी उम्मीद थी। LAT Aerospace जैसी निजी कंपनियां इन प्रयासों को धरातल पर लाने में मदद कर सकती हैं।
मौजूदा कंपनियों के लिए चुनौती
HAL (Hindustan Aeronautics Limited) और NAL (National Aerospace Laboratories)
जैसे सरकारी संस्थान पहले से छोटे एयरक्राफ्ट्स पर काम कर रहे हैं, लेकिन प्राइवेट सेक्टर की तरह स्केल और एफिशिएंसी की कमी है।
HAL का Hindustan 228 और NAL का Saras प्रोजेक्ट लंबे समय से विकास में हैं, लेकिन धीमी प्रक्रिया और ब्योरोक्रेसी के कारण अभी तक पूर्ण रूप से सक्रिय नहीं हो पाए।
LAT Aerospace की टीम और प्लान
दीपेन्द्र गोयल की टीम में पुराने स्टार्टअप्स में काम कर चुके अनुभवी लोग हैं। उनकी पूर्व CEO सुरभि दास इस कंपनी की सह-संस्थापक हैं।
वे एयरोस्पेस इंजीनियर्स को सैलरी के साथ ESOPs भी ऑफर कर रही हैं।
स्टार्टअप अभी तक $20 मिलियन का निवेश कर चुका है और आने वाले समय में $50 मिलियन और जुटाने की योजना बना रहा है।
यह निवेश डिज़ाइनिंग, मैन्युफैक्चरिंग, टेस्टिंग, सर्टिफिकेशन, और हायरिंग में इस्तेमाल किया जाएगा।
LAT Aerospace से संभावित लाभ
- रीजनल कनेक्टिविटी का विस्तार
- इंफ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता में कमी
- नौकरी के नए अवसर
- टूरिज्म और स्थानीय व्यापार को बढ़ावा
- डिसेंट्रलाइज्ड एयर ट्रैवल
- मल्टीप्लायर इफेक्ट – हर ₹1 निवेश से ₹3.5 की इकोनॉमिक वैल्यू
संभावित चुनौतियां
- DGCA से सर्टिफिकेशन
- सेफ्टी स्टैंडर्ड्स और टेस्टिंग
- इन्फ्रास्ट्रक्चर अप्रूवल्स और एनवायरमेंटल क्लियरेंसेस
- हाई इन्वेस्टमेंट रिक्वायरमेंट
- टेक्नोलॉजिकल सेटबैक्स और ट्रायल फेल्योर के रिस्क
कुछ महत्वपूर्ण बाते –
LAT Aerospace जैसे प्राइवेट इनिशिएटिव भारत की रीजनल कनेक्टिविटी को न सिर्फ एक नया चेहरा दे सकते हैं,
बल्कि इकोनॉमिक डेवलपमेंट के लिए भी एक नई राह खोल सकते हैं।
स्टार्टअप की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि वे तकनीकी बाधाओं को कैसे पार करते हैं
और रेगुलेटरी हर्डल्स को किस प्रकार हैंडल करते हैं। यदि सरकार इन प्राइवेट प्रयासों को समर्थन देती है,
तो यह न केवल भारत के एवीएशन सेक्टर को एक नई ऊंचाई दे सकता है बल्कि ‘मेक इन इंडिया’ और ‘वोकल फॉर लोकल’ जैसे अभियानों को भी मजबूती देगा।
महत्वपूर्ण प्रश्न: प्राइवेट इन्वेस्टमेंट कैसे रीजनल एयर ट्रैवल को ट्रांसफॉर्म कर सकती है और यह भारत के बैलेंस इकोनॉमिक डेवलपमेंट में किस प्रकार योगदान दे सकती है?
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